Пожары в Австралии: как зоопарк Mogo спас от огня своих животных

Несмотря на бушующие в Австралии лесные пожары, небольшой зоопарк сумел спасти всех своих животных благодаря усилиям его сотрудников.

В частном зоопарке Mogo, где звери обитают на свободном выгуле, живет большое число приматов, а также зебры, носороги и жирафы – всего 200 животных.

Когда стало ясно, что огонь подступает слишком близко, сотрудники сумели всех их спасти.

Некоторых укрыли на территории самого зоопарка, а обезьян, панд и даже тигра временно взял к себе домой один из сотрудников.

В минувший вторник власти юго-восточного штата Новый Южный Уэльс, где расположен зоопарк, отдали распоряжение об эвакуации людей, однако служители парка решили оставаться с животными.

Директор зоопарка Чад Стейплс сказал, что ситуация сложилась совершенно апокалиптическая: “Кажется, что подступает конец света“.

По его словам, зоопарк уцелел только потому, что изначально у них был план действий: перво-наперво служители удалили всё легко воспламеняющееся, а затем стали заниматься собственно животными.

Самые крупные – львы, тигры и орангутанги – были переведены в надежные закрытые вольеры, чтобы их там ничто не беспокоило, но вот более мелких зверей девать было некуда.

Тогда Стейплс решил взять их к себе домой.

“Сейчас у меня дома находятся совершенно разнообразные животные в разных комнатах, они там в полной безопасности и под защитой. Ни одно животное не погибло”, – сказал директор в интервью каналу ABC.

Сотрудница парка Сара Энг сказала в интервью радиопрограмме Би-би-си 5 Live, что некоторые маленькие обезьянки взяты в дом, как и тигр, которого поместили в отдельное помещение.

Жирафы и зебры остались в своих вольерах, поскольку они самостоятельно могут убежать от очагов возгорания.

По словам директора, они сильнее всего пострадали от стресса, вызванного не столько самим огнем, сколько суетой сотрудников и пожарными машинами.

Как сказал Стейплс, сотрудники зоопарка заранее заготовили сотни тысяч литров воды, а затем самолично тушили очаги возгорания.

Им пришлось работать чуть ли не круглые сутки, чтобы спасти животных, и только благодаря героическим усилиям сотрудников зоопарк удалось спасти.

Это особенно примечательно, учитывая, что лесные пожары в Австралии не утихают с сентября, и в огне погибли около 480 млн животных.

Особо серьезный ущерб нанес огонь той части Австралии, где находится этот зоопарк. Сильно пострадал находящийся неподалеку небольшой городок Мого, где сгорели десятки домов.

По данным местной полиции, с минувшего понедельника от огня в этом штате погибли по меньшей мере семь человек. Более 200 домов уничтожены огнем, и многие семьи остались без крова.

मोदी सरकार की वफ़ादारी में बीता मीडिया के लिए ये साल: नज़रिया

साल 2019 भारतीय मीडिया में बड़े बदलाव के रूप में दर्ज़ किया जाएगा. हालाँकि, बदलाव का दौर पहले से चल रहा था और नए ट्रेंड छिपे हुए नहीं थे, मगर इस साल जैसे वे अपने चरम पर पहुँच गए.

अब भारतीय मीडिया की दिशा और दशा दोनों बिल्कुल साफ़ दिखने लगी हैं.

मंदी के इस दौर में भी करीब ग्यारह फ़ीसदी की दर से विकास कर रही मीडिया इंडस्ट्री अब एक लाख करोड़ से ज़्यादा की हो गई है. संभावना है कि साल 2024 तक ये तीन लाख करोड़ का आँकड़ा पार कर जाएगी.

पत्र-पत्रिकाओं की संख्या एक लाख पंद्रह हज़ार से ऊपर हो गई है और टीवी चैनल 900 तक पहुँचने वाले हैं. एफएम रेडियो का जाल पूरे देश में बिछ गया है और डिज़िटल मीडिया की तो बात ही छोड़ दीजिए, उसकी विकास दर सबसे अधिक है. विज्ञापनों से आने वाला राजस्व ज़रूर अपेक्षा के अनुसार नहीं बढ़ रहा, फिर भी वह ठीक-ठाक है.

तो क्या हम इसी पैमाने के आधार पर मान लें कि हमारा मीडिया सेहतमंद है? या फिर ये देखना भी ज़रूरी है कि एक लोकतांत्रिक देश में वह अपनी भूमिका कितनी और कैसे निभा रहा है?

वास्तव में विदा लेता हुआ साल मीडिया को नए सिरे से परिभाषित करते हुए जा रहा है. उसने व्यावसायिक मीडिया के नए चरित्र को स्पष्ट कर दिया है, उसके इरादों और सरोकारों को उजागर कर दिया है. अब मीडिया को लेकर बहुत कम भ्रम रह गया है.

भारत में ये साल आम चुनाव का था और हर चुनाव मीडिया के लिए परिवर्तनकारी होता है. लेकिन, इस बार चुनाव से भी ज़्यादा परिवर्तनकारी घटना पुलवामा में हुआ आतंकवादी हमला था. इस हमले के बाद बालाकोट पर वायुसेना की सर्जिकल स्ट्राइक और फिर अभिनंदन की रिहाई ने न केवल चुनाव का एजेंडा बदल दिया, बल्कि इससे राजनीति का नरैटिव ही बदल गया.

जिस सरकार की वापसी को लेकर संदेह ज़ाहिर किए जा रहे थे, उसकी जीत को इसने सुनिश्चित कर दिया. पुलवामा के बाद देश में राष्ट्रोन्माद की एक लहर पैदा की गई. इसमें राजनीति का योगदान तो था ही, मगर मीडिया की भूमिका भी कम नहीं थी. उसने सत्ताधारी दल की ज़रूरत के अनुरूप चुनावी एजेंडा तय करने में बड़ी भूमिका निभाई.

सच तो ये है कि वह सत्तारूढ़ दल और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रवक्ता बन गया. उसने विपक्ष को दरकिनार ही नहीं किया, उसे कठघरे में खड़ा करके सत्तापक्ष के लिए स्थितियों को अनुकूल भी बना डाला. नतीजा बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की अभूतपूर्व जीत के रूप में सामने आया.

मोदी की जीत के साथ ही उग्र राष्ट्रवाद को नए पंख लग गए. मीडिया भी उसके सहारे उड़ने लगा. तमाम मीडिया संस्थान इस अति-राष्ट्रवाद का झंडा उठाकर चलने लगे. इसका मतलब ही था बीजेपी का अंध-समर्थन और उसके विरोधियों का अंध-विरोध.

अब हमारे सामने प्रश्न पूछने वाला, जवाबदेही तय करने वाला और आलोचना करने वाला नहीं, कीर्तन करने वाला भक्त-मीडिया था.

दोबारा सत्ता में आने के आत्मविश्वास से भरी सरकार ने मीडिया पर अपना नियंत्रण और भी बढ़ाना शुरू कर दिया. नतीजतन, जो थोड़ी-बहुत आज़ादी चुनाव के पहले के मीडिया में दिखलाई दे रही थी, वह भी ग़ायब हो गई. सरकार का एजेंडा उसका एजेंडा हो गया. वह सरकार की प्रोपेगंडा मशीनरी की तरह काम करने लगा.

सरकार के प्रति इस बढ़ती वफ़ादारी का असर हमें बार-बार दिखा. टीवी-अख़बारों का कंटेंट मुसलमान और पाकिस्तान तक सीमित रहने लगा. अर्थव्यवस्था पर गहराते संकट की ख़बरें हाशिए पर धकेल दी गईं. सरकार की नाकामियों पर बात करने का तो रिवाज़ ही जैसे ख़त्म हो गया.

न्यूज़ चैनलों पर होने वाली नब्बे प्रतिशत चर्चाएं हिंदू-मुस्लिम पर होने लगीं. उनमें घूम-फिरकर सांप्रदायिक उन्माद को हवा देने वाली नफ़रत और हिंसा से सनी झड़पों के दृश्य रचे जाने लगे. सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के एजेंडे से लैस सरकार उन्हें इसके लिए मुद्दे उपलब्ध करवाती रही.

वह तीन तलाक, धारा 370, अयोध्या विवाद और नागरिकता संशोधन जैसे मुद्दे एक-एक करके लाती रही और मीडिया उन्हें उसकी इच्छा के अनुरूप पैकेज करके परोसता रहा. गौरक्षा और मॉब लिंचिंग जैसे मसले तो पहले से थे ही, इतिहास और पहले से चले आ रहे स्टीरियोटाइप्स का भी इस्तेमाल इसके लिए किया गया.

कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने के बाद तो उसका रवैया एकदम से संविधान विरोधी ही हो गया. उसे कश्मीरियों के मौलिक अधिकारों की कोई चिंता नहीं रही, बल्कि सरकारी दमन को वह जायज़ ठहराता रहा. यहाँ तक कि उसे अपनी स्वतंत्रता की भी चिंता नहीं रही.

उसके इसी रवैये का असर था कि लोग विदेशी मीडिया का रुख़ करने लगे. विडंबना देखिए कि एक बार भारतीय मीडिया की तुलना में विदेशी मीडिया उन्हें ज़्यादा भाने लगा. उन्हें विदेशी चैनल और पत्र-पत्रिकाएं अधिक विश्वसनीय लगने लगे.

उन्हें लगने लगा कि अघोषित आपातकाल से गुज़र रहा भारतीय मीडिया सच नहीं बताएगा, इसके लिए तो उन्हें बीबीसी, द गार्डियन और वॉशिंगटन पोस्ट की मदद लेनी पड़ेगी. तुलना की इस प्रक्रिया में ये और भी ज़्यादा उजागर हो गया कि भारतीय मीडिया कतई स्वतंत्र नहीं है. उसकी बची-खुची साख़ भी धूल धूसरित हो गई.

इस तरह साल के अंत तक मीडिया का चरित्र पूरी तरह से बदल चुका था. विचारों की विविधता और बहुलता ख़त्म हो गई. मतभेदों को अपराध बना दिया गया. हेट न्यूज़ या हेट कंटेंट अख़बारों के पन्नों से लेकर टीवी स्क्रीन तक हर जगह पसर गया.

नए मीडिया की कमान बाज़ारवादी-राष्ट्रवादी-सवर्णवादी पत्रकारों के हाथ में जा चुकी है. ज़ाहिर है कि दलित-आदिवासियों की चिंताएं उसके दायरे से बाहर हो चुकी हैं. अगर बलात्कार न हो तो महिलाओं पर भी वह वक़्त बरबाद न करे. अल्पसंख्यक तो उसके सीधे निशाने पर हैं.

मानवाधिकार कार्यकर्ता, स्वयंसेवी संगठनों से जुड़े लोग, वामपंथी और उदारवादी भी उसके लिए खलनायक बन गए हैं. वह इन्हें कभी टुकड़े-टुक़ड़े गैंग की संज्ञा देता है तो कभी अर्बन नक्सलाइट बताता है. इनका चरित्र हनन करना और जनता की निगाहों में उन्हें देशद्रोही बनाना उसके अघोषित लक्ष्यों में से एक बन गया है.

ऐसा नहीं है कि मीडिया का ये रूप उसकी सहमति या इच्छा से निर्मित हुआ है. ये सही है कि मीडिया में इनके प्रति स्वाभाविक रुझान रहा है. ऐसा उसकी आंतरिक संरचना की वज़ह से भी है. वह सत्ता, उच्च-मध्यवर्ग और अपरकास्ट की ओर पहले से झुका हुआ है. मगर इसके लिए सरकार ने हर हथकंडा भी अपनाया है.

सरकार ने कभी संकेतों में तो कभी बाकायदा एडवायज़री और चेतावनियाँ देकर मीडिया को धमकाया है. उसने कई बड़े अख़बारों के विज्ञापन रोककर मीडिया जगत में भय पैदा किया. उसकी भृकुटियाँ तनीं देखकर कई संपादकों और पत्रकारों को संस्थानों से निकाला गया. उसने भय का ऐसा वातावरण बनाया कि मीडिया झुकने के बजाय रेंगने लगा.

मीडिया का नया चरित्र दूसरे माध्यमों जैसे सोशल मीडिया के प्रभाव-दबाव से भी बना. सोशल मीडिया में अतिरंजित टिप्पणियाँ और भड़काऊ कंटेंट की सफलता ने उसे भी ललचाया और वह भी उसके जैसा बनने लगा. लेकिन इस मीडिया पर सरकार और सत्तारूढ़ दल का ज़ोर काम कर रहा था.

फ़ेसबुक, व्हाट्सऐप, ट्वीटर और यू ट्यूब में जो कंटेंट पैदा हो रहा है वह कई तरह के अविश्वसनीय स्रोतों से भी आ रहा है. इसमें राजनीतिक दलों के आईटी सेल भी हैं, ट्रोलर भी हैं और बाज़ार की ताक़तें भी. इसीलिए फ़ेक न्यूज़ का असर उस पर भी दिखलाई देने लगा.

मीडिया इंडस्ट्री में आ रहे बदलाव भी बड़ी वजहों में से एक हैं. एक तो तकनीक मीडिया यूजर्स के व्यवहार में व्यापक बदलाव लाई है. स्मार्ट फ़ोन अब ख़बरें और दूसरे कंटेंट देखने का सबसे बड़ा प्लेटफ़ॉर्म बन गया है और उसकी अपनी सीमाएं भी हैं. इस प्लेटफ़ॉर्म के हिसाब से कंटेंट तैयार करना और दूसरों से होड़ लेना बड़ी चुनौती है.

मीडिया में बड़ी पूँजी वाले कॉर्पोरेट का बढ़ता वर्चस्व भी उसकी स्वतंत्रता को ख़त्म कर रहा है. कॉर्पोरेट अपने स्वार्थों के लिए मीडिया को हथियार बना रहे हैं और इस क्रम में उन्होंने सत्ता से गठजोड़ कर लिया है. ये प्रवृत्ति इस साल और भी बढ़ी है.

लेकिन मुख्य अपराधी तो सरकार ही है. उसने आपातकाल की घोषणा नहीं की है और न ही औपरचारिक सेंसरशिप लागू की है. मगर मीडिया को मजबूर कर दिया है कि वह उसके हितों के हिसाब से चले, वह चल रहा है.

जब इसराइली स्पाईवेयर की मदद से मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ही नहीं, पत्रकारों के संदेशों तक को रिकॉर्ड किया जा रहा हो तो अच्छी पत्रकारिता के लिए गुंज़ाइश ही कहाँ बचती है.

中俄伊40年来首次军演 美国三大对手联合引关注

中国国防部周四表示,中国、伊朗、俄罗斯在本周五举行联合军事演习,演习地点在印度洋北部的阿曼湾。演习将持续四天。这是三国40年来首次举行联合军演

国防部新闻发言人吴谦说,“中国将派西宁号导弹驱逐舰参加,此次演习旨在深化三国海军之间的交流合作。展示三方共同维护世界和平与海上安全,积极构建‘海洋命运共同体’的良好意愿和能力。”

他强调这次演习是三国间一次“正常的军事交流”,与地区形势没有必然联系。

阿曼湾是非常敏感的战略航道,它与霍尔姆斯海峡相连,全球约五分之一的石油通过阿曼湾和霍尔姆斯海峡运输。

演习背景之一是伊朗和美国之间日趋紧张的关系。

去年,美国总统特朗普退出2015年签署的伊朗核协议。该协议由六个国家共同签署。美国退出后,再次对伊朗进行经济制裁沉重打击了伊朗的经济。

该区域的紧张局势不完全因为伊朗重启颇具争议的核计划,亦源于九月一起针对沙特石油设施的袭击。沙特和美国都指责伊朗是始作俑者。伊朗否认。

此外,今年5月和6月,连续发生多起针对国际商船的袭击,包括在海湾区域一次针对沙特运输船的袭击。美国指责伊朗为幕后黑手,但后者依然否认。华盛顿随即提议进行美国主导的海洋军事行动。

本周三伊朗的军方发言人表示,印度洋和阿曼湾是国际贸易的关键海域,保持安全与秩序是重要的任务。

长期以来,中国与伊朗之间有紧密的外交关系,在贸易和能源领域关系也很密切。中国和伊朗的军方互动频繁,2017年中伊在霍尔姆斯海峡举行过联合军演,中国与俄罗斯也经常进行联合军演,然而三国联合军演是伊朗在1979年伊斯兰革命后的首次。

在美国单方面退出伊朗核协议之后,中国、俄罗斯乃至美国多年盟友——欧盟都仍然表态支持伊朗。

而随着美国与中国在贸易问题上的对峙不断升级,以及美俄之间日关系日趋紧张,美中、美伊、美俄之间都形成了战略竞争的关系,这使三国的联合军演被放在一个更大的国际政治格局下加以观察。

对中国而言,并不是简单的选边站队。虽然今年6月,习近平在会见伊朗总统鲁哈尼时曾承诺,“无论国际和地区形势如何变化,中方愿同伊方一道努力,推动中伊全面战略伙伴关系持续稳步发展。”

但中国与伊朗在的区域对手沙特阿拉伯也维持这良好的关系,这意味着中国需要在该区域而国际关系上保持微妙的平衡。中国国家主席习近平明年很有可能会访问沙特阿拉伯,届时2020年的G20峰会将在沙特阿拉伯举行。

2016年,中国领导人称在中东将坚持“不寻找代理人,不搞势力范围,不填补权力真空”三不原则。

व्हाट्सऐप बंद हो जाएगा इन फ़ोन पर

अगले कुछ महीनों में दुनिया के लाखों मोबाइल फ़ोन पर व्हाट्सऐप काम करना बंद कर देगा.

ऐसा इसलिए होगा क्योंकि व्हाट्सऐप बहुत सारे पुराने फ़ोन से सपोर्ट ख़त्म करने जा रहा है.

व्हाट्सऐप की मालिक कंपनी फ़ेसबुक ने इस बारे में एक बयान जारी कर कहा है, “एक फ़भी आईफ़ोन, और 2.3.7 या उससे पहले के वर्ज़न वाले एंड्रॉयड डिवाइसों पर व्हाट्सऐप नहीं चल सकेगा.”

कंपनी ने साथ ही कहा है कि विंडोज़ पर चलने वाले फ़ोनों पर 31 दिसंबर 2019 के बाद व्हाट्सऐप बंद हो जाएगा.

माइक्रोसॉफ़्ट भी इसी महीने विंडोज़ 10 पर चलने वाले मोबाइल फ़ोन का सपोर्ट बंद करने वाला है.

व्हाट्सऐप ने अपनी वेबसाइट के FAQ सेक्शन में भी इस बात की जानकारी दी है.

वहाँ लिखा है कि पुराने वर्ज़न वाले एंड्रॉयड और आईफ़ोन पर 1 फ़रवरी, 2020 के बाद ना तो नए एकांउट खोले जा सकेंगे, ना ही मौजूदा एकांउट्स को री-वेरीफ़ाई किया जा सकेगा.

फ़ेसबुक ने व्हाट्सऐप को 2014 में 19 अरब डॉलर में ख़रीदा था. कंपनी व्हाट्सऐप को अपने दूसरे मेसेजिंग प्लेटफ़ॉर्म मेसेंजर और इंस्टाग्राम के साथ इंटीग्रेट करना चाहती है.

व्हाट्सऐप के अनुसार दुनिया के 180 से ज़्यादा देशों के 1 अरब से ज़्यादा लोग उनके ऐप का इस्तेमाल करते हैं.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूबपर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)

अगले कुछ महीनों में दुनिया के लाखों मोबाइल फ़ोन पर व्हाट्सऐप काम करना बंद कर देगा.

ऐसा इसलिए होगा क्योंकि व्हाट्सऐप बहुत सारे पुराने फ़ोन से सपोर्ट ख़त्म करने जा रहा है.

व्हाट्सऐप की मालिक कंपनी फ़ेसबुक ने इस बारे में एक बयान जारी कर कहा है, “एक फ़रवरी 2020 से iOS 8 या उससे पुराने वर्ज़न वाले सभी आईफ़ोन, और 2.3.7 या उससे पहले के वर्ज़न वाले एंड्रॉयड डिवाइसों पर व्हाट्सऐप नहीं चल सकेगा.”

कंपनी ने साथ ही कहा है कि विंडोज़ पर चलने वाले फ़ोनों पर 31 दिसंबर 2019 के बाद व्हाट्सऐप बंद हो जाएगा.

माइक्रोसॉफ़्ट भी इसी महीने विंडोज़ 10 पर चलने वाले मोबाइल फ़ोन का सपोर्ट बंद करने वाला है.

व्हाट्सऐप ने अपनी वेबसाइट के FAQ सेक्शन में भी इस बात की जानकारी दी है.

वहाँ लिखा है कि पुराने वर्ज़न वाले एंड्रॉयड और आईफ़ोन पर 1 फ़रवरी, 2020 के बाद ना तो नए एकांउट खोले जा सकेंगे, ना ही मौजूदा एकांउट्स को री-वेरीफ़ाई किया जा सकेगा.

फ़ेसबुक ने व्हाट्सऐप को 2014 में 19 अरब डॉलर में ख़रीदा था. कंपनी व्हाट्सऐप को अपने दूसरे मेसेजिंग प्लेटफ़ॉर्म मेसेंजर और इंस्टाग्राम के साथ इंटीग्रेट करना चाहती है.

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व्हाट्सऐप की मालिक कंपनी फ़ेसबुक ने इस बारे में एक बयान जारी कर कहा है, “एक फ़रवरी 2020 से iOS 8 या उससे पुराने वर्ज़न वाले सभी आईफ़ोन, और 2.3.7 या उससे पहले के वर्ज़न वाले एंड्रॉयड डिवाइसों पर व्हाट्सऐप नहीं चल सकेगा.”

कंपनी ने साथ ही कहा है कि विंडोज़ पर चलने वाले फ़ोनों पर 31 दिसंबर 2019 के बाद व्हाट्सऐप बंद हो जाएगा.

माइक्रोसॉफ़्ट भी इसी महीने विंडोज़ 10 पर चलने वाले मोबाइल फ़ोन का सपोर्ट बंद करने वाला है.

व्हाट्सऐप ने अपनी वेबसाइट के FAQ सेक्शन में भी इस बात की जानकारी दी है.

वहाँ लिखा है कि पुराने वर्ज़न वाले एंड्रॉयड और आईफ़ोन पर 1 फ़रवरी, 2020 के बाद ना तो नए एकांउट खोले जा सकेंगे, ना ही मौजूदा एकांउट्स को री-वेरीफ़ाई किया जा सकेगा.

फ़ेसबुक ने व्हाट्सऐप को 2014 में 19 अरब डॉलर में ख़रीदा था. कंपनी व्हाट्सऐप को अपने दूसरे मेसेजिंग प्लेटफ़ॉर्म मेसेंजर और इंस्टाग्राम के साथ इंटीग्रेट करना चाहती है.

व्हाट्सऐप के अनुसार दुनिया के 180 से ज़्यादा देशों के 1 अरब से ज़्यादा लोग उनके ऐप का इस्तेमाल करते हैं.

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नागरिकता संशोधन क़ानून: क्या बीजेपी हड़बड़ी में गड़बड़ी कर गई

12 और 13 दिसंबर की दरम्यानी रात को नागरिकता संशोधन विधेयक पर राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर कर दिए और इसे क़ानून की शक्ल दे दी.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

लेकिन राष्ट्रपति तक विधेयक पहुंचने से पहले ही पूरे पूर्वोत्तर में इसका ज़ोरदार विरोध शुरू हो गया.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

10 दिसंबर को लोकसभा में इस विधेयक पर लंबी चर्चा हुई जिसके बाद सदन में ये बहुमत से पास हो गया. इसी दिन से असम में छात्रों और आम लोग सड़कों पर उतरना शुरु हो गया था. स्थिति पर काबू पाने के लिए सुरक्षाबलों की भारी तैनाती की गई लेकिन सड़कों पर विरोध कम नहीं हुआ.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

11 दिसंबर को विधेयक राज्यसभा पहुंचा और देर शाम जब ये पारित हुआ उस वक्त तक उत्तरपूर्व के असम, मणिपुर, त्रिपुरा में विरोध प्रदर्शन और हिंसा भड़क उठी. शाम तक गुवाहाटी में कर्फ्यू लगा दिया गया था.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

विधेयक पारित कराने के लिए सदन में सरकार की तरफ से मोर्चा संभालने वाले गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि उत्तरपूर्व को इस विधेयक के कारण नुक़सान नहीं होगा. लेकिन उनकी बात के असर होता कहीं दिखा नहीं.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

ग़ौरतलब है कि नागरिकता संशोधन विधेयक को पेश करने के दौरान ही यानी 9 दिसंबर को मणिपुर को भी इनर लाइन परमिट में शामिल करने का प्रस्ताव किया गया था. लेकिन हिंसा भड़कने के बाद ही इससे संबंधित दस्तावेज़ बने.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

11 दिसंबर को अचानक मणिपुर में भी इनर लाइन परमिट व्यवस्था लागू करने संबंधी आदेश पर राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर कर दिए.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

इनर लाइन परमिट एक तरह का यात्रा दस्तावेज़ है, जिसे भारत सरकार अपने नागरिकों के लिए जारी करती है, ताकि वो किसी संरक्षित क्षेत्र में निर्धारित अवधि के लिए यात्रा कर सकें. फिलहाल ये अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिज़ोरम और मणिपुर में लागू है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

कांग्रेस नेता गौर गोगोई इसे बीजेपी की विभाजनकारी नीति बताते हैं और कहते हैं कि ये उत्तर-पूर्व को बाँटने का बीजेपी का एक तरीक़ा है.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

लेकिन मामला सिर्फ़ उत्तरपूर्व में विरोध का नहीं है. बल्कि दिल्ली, मुंबई, औरंगाबाद, केरल, पंजाब, गोवा, मध्यप्रदेश समेत कई इलाकों में विरोध प्रदर्शन बढ़ रहे हैं.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

क्या बीजेपी को इस बात का अंदेशा नहीं था कि असम में इतने बड़े स्तर के प्रदर्शन शुरू हो जाएंगे?मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

यह सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि जापान के प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे भारत आने वाले थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ गुवाहाटी में उनकी मुलाक़ात होने वाली थी. आबे का दौरा 15-17 दिसंबर तक के लिए प्रस्तावित था मगर अंतिम वक्त पर इसे टाल दिया गया.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

चर्चा हो रही है कि अगर सरकार को अनुमान होता कि इस तरह के प्रदर्शन हो सकते हैं तो इस मुलाक़ात के लिए या तो गुवाहाटी को नहीं चुना जाता या फिर इस समय इस विधेयक को पेश करने से बचा जाता.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

क्या बीजेपी की नागरिकता संशोधन क़ानून लागू करने की कोशिश उत्तरपूर्व में बैकफ़ायर कर गई?मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

राजनीतिक विश्लेषक राधिका रामासेशन कहती हैं, “मुझे लगता है कि दिल्ली से बहुत कम लोग ही उत्तरपूर्व को समझ पाए हैं. वहां कई तरह के समुदाय हैं और उन्हें समझने में पूरा एक जनम लगेगा. बीजेपी पूरे उत्तरपूर्व को असम की तरह समझ रही थी. शायद असम को भी पूरी तरह बीजेपी समझ नहीं पाई है.”मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

कोलकाता में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार सुबीर भौमिक बताते हैं, “उत्तरपूर्व के बारे में बीजेपी की जानकारी बहुत कम है. इसका कारण ये है कि बीजेपी के नेता हर चीज़ को धर्म के चश्मे से देखते हैं. उन्हें लगा कि वो ऐसा कर देंगे तो हिंदू लोग उनके पक्ष में आ जाएंगे. उन्हें ये अंदाज़ा नहीं है कि असम या उत्तरपूर्व के दूसरे क्षेत्र हैं वहां रहने वालों के लिए बंगाली हिंदू और बंगाली मुसलमान एक ही चीज़ है. वो मानते हैं कि ये लोग यहां आकर बसेंगे तो यहां की डेमोग्राफ़ी बदल जाएगी.”मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

“बीजेपी का मंत्र, ‘असमिया हिंदू, बंगाली हिंदू भाई भाई’ ये फॉर्मूला वहां नहीं चल पाया. उन्हें लगा कि असम में हमें बहुमत मिला था और ये हिंदू राज्य है यहां कोई विरोध नहीं होगा. लेकिन बाद में उन्होंने यहां कुछ जगहों पर इनर लाइन परमिट को बढ़ाया. ऐसे में असम और त्रिपुरा में लोगों को लगने लगा कि दूसरी जगहों के बंगाली हिंदू उनकी जगहों में आ जाएंगे.”मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

सुबीर भौमिक बताते हैं, “बीजेपी जल्दबाज़ी में अपना कोई राजनीतिक एजेंडा कामयाब करना चाहती है. उन्हें पता है कि अर्थव्यवस्था जैसे मामलों में वो पहले ही बैकफुट पर हैं तो हम हिंदू एजेंडा आगे बढ़ाएंगे. उन्हें लगा कि कश्मीर, एनआरसी, राम मंदिर और नागरिकता संशोधन क़ानून कर देंगे को हिंदू वोट हमारे पक्ष में जाएंगे. पार्टी बहुत जल्दी में है.”मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

राधिका रामासेशन बताती हैं, “ये केवर उत्तर भारत का सवाल नहीं है. बीजेपी पश्चिम बंगाल में चुनावों पर भी ध्यान दे रही है. उन्हें लगता है कि अगर वो नागरिकता संशोधन क़ानून को ठीक से लागू कर लेंगे तो उन्हें बंगाली हिंदुओं का एक नया वोटबैंक (जिन्हें अब तक नागरिकता नहीं मिली है) उन्हें मिल जाएगा.”मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

“एक वक्त कांग्रेस ने भी असम में मुसलमान वोट बैंक बनाया था. उन्होंने ईस्ट पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए शरणार्थियों को लेकर एक ठोस वोट बैंक था.मुक्त अश्लील सेक्स और अनल सेक्स संग्रह

“اختصار” أم “عقاب” حديث الصباح والمساء بلا “عمرو واكد” على دي إم سي دراما

حذفت قناة دي إم سي دراما مشاهد شارك فيها الممثل المصري عمرو واكد من مسلسل “حديث الصباح والمساء”، فيما قال مدير القناة فى تصريحات لبي بي سي إنه تم اختصار التيتر- المقدمة الغنائية للمسلسل- لإتاحة الفرصة لعرض المزيد من الإعلانات، غير أنه بمتابعة حلقات المسلسل يتضح حذف اسم الممثل المصري عمرو واكد من تيتر المسلسل بالإضافة إلى مشاهده بالمسلسل ذاته.

وأُنتج “حديث الصباح والمساء” عام 2001، وهو مأخوذ عن قصة لنفس الأسم للأديب المصري نجيب محفوظ، وعالجها للتلفزيون الكاتب محسن زايد، وأخرج المسلسل أحمد صقر، ويقوم ببطولته كل من ليلي علوي وخالد النبوي وعمرو واكد وعبلة كامل.

ويعرف عن الممثل المصري عمرو واكد – المقيم خارج مصر حاليا – مواقفه السياسية المعارضة للحكومة الحالية، كما أعلن من قبل رفضه للتعديلات الدستورية التي أجراها الرئيس المصري عبدالفتاح السيسي لتسمح ببقائه في السلطة حتى 2030.

في الوقت نفسه يواجه عمرو واكد بلاغات من محامين مصريين بتهم التحريض ضد الدولة المصرية ومؤسساتها، وفي مارس/ آذار الماضي، ألغت نقابة المهن التمثيلية المصرية عضويته عقب وجوده في جلسة للكونغرس الأميركي في واشنطن لمناقشة أوضاع حقوق الإنسان في مصر.

لا تيتر ولا مشاهد
وحسب المسلسل فإن عمرو واكد يظهر فى بداية كل حلقة ممسكا بكتاب ويحاول التحدث مع شخصيات المسلسل، ولكن لا أحد يرد عليه، ويعتبر نقاد شخصية “النقشبندي” التي يؤديها “عمرو واكد” بمثابة مفتاح الأحداث، وحذفها يؤثر فى أحداث المسلسل، فيما يعتبره نقاد سابقة لم تحدث من قبل.

فتيتر المسلسل عرض بدون أي إشارة إلى وجود عمرو واكد في المسلسل كما خلت حلقات المسلسل منه، الحلقة 18 التي أذيعت الأحد 17 نوفمبر/تشرين الثاني الجاري بعد حذف مشهد لقاء يجمع بين عمرو واكد “النقشبندي” وليلي علوي “هدى هانم”؛ بينما نسخة المسلسل التي أذيعت خلال السنوات الماضية عبر فضائيات مختلفة كان المشهد موجودا في الدقيقة 25.

“اختصار”
بدوره قال مدير قناة دي إم سي دراما يسري الفخراني في تصريحات لبي بي سي إنه تم اختصار كل تيترات المسلسلات لوجود كثافة إعلانية، مؤكدا في نفس الوقت أنه تم عرض مسلسل حديث الصباح والمساء أربع مرات خلال سنة ونصف بكامل التيتر.

وأضاف الفخراني فى تصريحات مقتضبة عبر تطبيق “واتس اب” أن إدارة القناة “اضطرت لاختصار كل تيترات المسلسلات على القناة لدواعي الوقت نتيجة المساحة الإعلانية وهو أمر نضطر للجوء إليه في أوقات كثيرة لضبط الخريطة البرامجية”.

واستكمل الفخراني قائلا “حتى مسلسلاتنا الجديدة تم اختصار التيتر تماما، والمسلسل يذاع بكامل التيتر كما كل المسلسلات على منصتنا ووتشت”.

وتملك مجموعة قنوات دي إم سي دراما منصة غير مجانية لعرض المسلسلات على الإنترنت، وتعرض من خلالها مسلسلات وأفلام مصرية وعربية، وتتبع قناة دي إم سي دراما.

وردا على سؤال حول هل هناك موقف للقناة من الممثل عمرو واكد، بعد حذف اسمه من تيتر المسلسل، قال الفخراني “دائما التيتر المختصر يكتفي بالبعض حسب مونتاج الأغنية المختصرة، وبالمناسبة لهذا المسلسل كليب يذاع شبه يوميا على كل قنوات الدراما فيه كل الممثلين”.

ويقول الفخراني إن “دي إم سي دراما تذيع كل المسلسلات الجيدة بخريطة تجعلنا نتميز، وهذا دورنا”.

ويري “واكد” أن حذف المشاهد هو عقاب له على مواقفه السياسية المعارضة للنظام، مشيرا إلى أن هذه ليست المرة الأولى، “فقد تم رفع قضايا عديدة ضدي لتشويه صورتي، كذلك منعت الحكومة عرض مسلسل “أهل الإسكندرية” من قبل”، حسبما قال في اتصال هاتفي لبي بي سي.

وأستكمل “واكد” المقيم خارج مصر منذ عامين، قائلا “شاركت فى مسلسل حديث الصباح والمساء ولدي مشاهد أظهر فيها ومن حقي أن يتم نشر اسمي ضمن فريق العمل، فلا يمكن بأي حال من الأحوال تزييف التاريخ”، ويستكمل واكد قائلا “إذا كان الهدف هو اختصار التيتر لعرض المزيد من الإعلانات فلماذا اقتصر الاختصار على اسمي ومشاهدي فقط.؟!”

ويضيف “واكد” بخلاف حذف المشاهد هناك حملات تشويه منظمة تشن ضدي من قبل الحكومة، وتنشر شائعات بأني غير مصري أو من أصول غير مصرية”.

“ما يحزنني ليس مجرد حذف مشاهدي من المسلسل، ولكن تلك الحالة من القمع الموجودة حاليا من حبس معارضين وتخوين كل من له رأي أو موقف معارض”، هكذا ختم واكد حديثه لبي بي سي.

سد النهضة: هل ينجح رهان السيسي على ترامب لحل الأزمة؟

بعد محادثات دامت يومين برعاية أمريكية في واشنطن، ضمت وزراء خارجية كل من مصر والسودان وإثيوبيا، أعلن المسؤولون الثلاثة أن سعيهم نحو حل خلافاتهم حول تشغيل سد النهضة بحلول منتصف يناير/كانون الثاني المقبل متواصل.

وبالفعل سيعقد وزراء الموارد المائية في الدول الثلاث، بمشاركة ممثلي الولايات المتحدة والبنك الدولي، اجتماعات عاجلة سعيا لإبرام اتفاق، بحلول منتصف يناير/كانون الثاني 2020، يضع ترتيبات لملء سد النهضة وتشغيله.

وتلت تلك الاجتماعات تصريحات تنم عن تفاؤل بعض أطرافها باحتمال كسر الجمود في المفاوضات وإيجاد حلول للخلافات القائمة بين مصر وإثيوبيا. وأصدر وزير الخارجية المصري، سامح شكري، بيانا وصف فيه اجتماعات واشنطن بأنها “إيجابية من شأنها ضبط مسار المفاوضات ووضع جدول زمني محدد لها”.

من جهته قال الرئيس الأمريكي، دونالد ترامب إنه أجرى “محادثات مع مسؤولين في مصر وإثيوبيا والسودان بخصوص الخلاف الذي أثاره سد النهضة الذي تبنيه إثيوبيا على نهر النيل”.

وقد سبق أن أشاد الرئيس المصري عبد الفتاح السيسي، في تغريدتين نشرهما على حسابه الرسمي في موقع “تويتر” بترامب، وقال: “كعادته أثبت الرئيس ترامب أنه رجل من طراز فريد ويمتلك القوة لمواجهة الأزمات والتعامل معها، وإيجاد حلول حاسمة لها”.

وأضاف الرئيس السيسي “أؤكد على ثقتي الكاملة في هذه الرعاية الكريمة والتي من شأنها إيجاد سبيل توافقي يرعى حقوق كافة الأطراف في إطار قواعد القانون الدولي والعدالة الإنسانية”.

ويستنتج من التغريدتين أن الرئيس عبد الفتاح السيسي يعول على وساطة أمريكية في هذا الملف تكون داعمة لموقف مصري يقول إنه يستند إلى القانون الدولي ورادعة لموقف إثيوبي يرى أن ضرورات التنمية المستقبلية للبلاد تقتضي بناء السد أي كانت القيود المنصوص عليها في الاتفاقيات الموقعة على مدى أكثر من قرن من الزمان.

غير أن الجانب الإثيوبي كان أكثر إصرارا على وضع النقاط على الحروف والتقليل من اهمية الدور الأمريكي في سيرها. وقال نيبيات غيتاشيو المتحدث باسم الخارجية الإثيوبية في تصريحات لبي بي سي إن لقاءات واشنطن ليست مفاوضات بل فرصة لتوضيح مواقف الأطراف المعنية بسد النهضة. وأضاف “الولايات المتحدة ليست وسيطا، ولا يمكن أن تكون هذه اللهجة الصحيحة للحوار”.

وأيا كانت طبيعة المحادثات التي اكتستها لقاءات واشنطن وما إذا كانت هذه الأخيرة وسيطا فيها، فإن من المؤكد أن حدة الخلاف بين مصر وإثيوبيا تراجعت ولو إلى حين بعد تصريحات كان قد أدلى بها رئيس وزراء إثيوبيا آبي أحمد الشهر الماضي، وأشار فيها إلى احتمال نشوب حرب بين بلاده ومصر بسبب سد النهضة.

ووفقا لبعض المتابعين فإن إدارة الرئيس ترامب التي ابتعدت عن اعتماد الديبلوماسية سبيلا لحل مشاكلها ومشاكل العالم، ولا تتوفر على رصيد ديبلوماسي ناجح في أي بؤرة من البؤر الساخنة ربما رأت أن الوقت اليوم موات لاستغلال بعض المشاكل الدولية للأسباب التالية:

أولا، يتعرض الرئيس الأمريكي منذ أسابيع لحساب عسير قد ينتهي بعزله من قبل الكونغرس بسبب ما يعرف بفضيحة “اوكرانيا”. بالتالي فإن الظهور بموقف الوسيط في هذا النزاع لا يمكن إلا أن يفيده سياسيا. فبعد سنة من اليوم سيواجه الرئيس ترامب امتحان الانتخابات، ولا بأس في أن يدخل حملتها كبطل سلام بين مصر وإثيوبيا.

ثانيا، ربما كانت وراء اهتمام الرئيس ترامب شخصيا بقضية سد النهضة الفرص الاستثمارية الكبيرة التي يعرضها المشروع. فالسد قيد البناء وتكاليف الاستثمار ما بين تشغيله وإكمال بنائه تبلغ نحو 5 مليارات دولار. وإذا كانت أديس أبابا ستمنح عقودا استثمارية للشركات الأمريكية.

ثالثا، ثمة من يقول إن الصداقة التي تجمع الرئيس المصري بنظيره الأمريكي وازنة في هذا الملف وستثبت فعاليتها. فليس من المعروف وجود صداقة لترامب مع رئيس وزراء إثيوبيا. وبالتالي قد تخدم هذه الوساطة الحليف المصري علاوة على المصلحة الأمريكية.

لكن نجاح الوساطة الأمريكية يبقى رهينا بموقف الطرف الإثيوبي من الدور الأمريكي وحسابات الربح والخسارة المرتبطة به. وإذا فشلت واشنطن لسبب أو لآخر فإن أطراف أوروبية جاهزة لأن تتدخل في حال اقتضت الضرورة للحيلولة دون اندلاع حرب مدمرة وغير منطقية بين مصر وإثيوبيا

करतारपुर कॉरिडोर के बारे में 10 सवालों के जवाब

भारत और पाकिस्तान में चर्चित करतारपुर कॉरिडोर 9 नवंबर को खुलने वाला है. इसे लेकर दोनों देशों के बीच समझौता हो चुका है और कई सांसद, विधायक व मंत्री करतारपुर जाने वाले पहले जत्थे का हिस्सा बनने जा रहे हैं.

दोनों देशों के बीच हुए समझौते में भारतीय पासपोर्ट धारकों एवं ओसीआई (भारतीय विदेशी नागरिकता) कार्ड धारकों के लिए वीज़ा मुक्त यात्रा, भारत के हिस्से को जोड़ने के लिए रावी नदी के डूबे क्षेत्र पर पुल निर्माण और रोज़ाना कम से कम पाँच हज़ार श्रद्धालुओं को दर्शन की इजाज़त शामिल है.

पहले जत्थे में पंजाब के विधायक, सांसद, केंद्रीय मंत्रियों में हरसिमरत कौर व हरदीप सिंह पुरी शामिल होंगे. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस पहले जत्थे की अगुवाई करेंगे.

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत की तरफ़ से और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान पाकिस्तान की तरफ़ से कॉरिडोर का उद्घाटन करेंगे.

करतारपुर कॉरिडोर पंजाब स्थित डेरा बाबा नानक को करतारपुर स्थित दरबार साहेब से जोड़ेगा. इससे पहले लोगों को वीज़ा लेकर लाहौर के रास्ते दरबार साहेब जाना पड़ता था जो एक लंबा रास्ता था.

लंबे समय से सिख करतारपुर कॉरिडोर की मांग करते रहे हैं ताकि तीर्थयात्री दरबार साहेब दर्शन के लिए जा सकें.

पिछले साल भारत और पाकिस्तान सरकार ने करतारपुर कॉरिडोर की नीव रखी थी. इसे लेकर दोनों देशों के बीच कुछ विवाद भी हुआ और दोनों ने अपनी-अपनी शर्तें सामने रखीं थी. अंत में दोनों देश एक समझौते पर पहुंच गए.

अब जैसे-जैसे कॉरिडोर खुलने की तारीख़ नज़दीक आ रही है तो लोगों के बीच भी चर्चा बढ़ गई है. पढ़िए करतारपुर साहेब से जुड़े कुछ सामान्य सवालों के जवाब –

यह करतारपुर कॉरिडोर के लिए ऑनलाइन आवेदन के दौरान ज़रूरी है. अब पाकिस्तानी पीएम इमरान ख़ान ने घोषणा की है कि पासपोर्ट की ज़रूरत नहीं है और सिर्फ़ वैध पहचान पत्र लाना होगा.

आपको पंजीकरण के बाद नोटिफिकेशन प्राप्त होगा. इसके अलावा आप गृह मंत्रालय की वेबसाइट पर भी देख सकते हैं.

जिस व्यक्ति के पास ओसीआई कार्ड है वो करतारपुर कॉरिडोर से जा सकता है. अन्य लोगों को वीज़ा के लए आवेदन करना होगा.

सोमवार को होने वाले कार्यक्रम को भारत और पाकिस्तान के रिश्तों के लिए अहम माना जा रहा है.

करतारपुर साहिब पाकिस्तान में आता है लेकिन इसकी भारत से दूरी महज़ साढ़े चार किलोमीटर है.

अब तक कुछ श्रद्धालु दूरबीन से करतारपुर साहिब के दर्शन करते रहे हैं. ये काम बीएसएफ़ की निगरानी में होता है.

श्रद्धालु यहां आकर दूरबीन से सीमा पार मौजूद करतापुर साहेब के दर्शन करते हैं.

मान्यताओं के मुताबिक़, सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक 1522 में करतारपुर आए थे. उन्होंने अपनी ज़िंदगी के आख़िरी 18 साल यहीं गुज़ारे थे.

माना जाता है कि करतारपुर में जिस जगह गुरु नानक देव का देहावसान हुआ था वहां पर गुरुद्वारा बनाया गया था.

英国脱欧:欧盟有戏看 英国无航图

班主任收到小男生送来的家长申请信,请求考虑让孩子留级。信还没看完,班主任又收到小男生自己签字的申请信,请求不要考虑让他留级,不留不留就不留!

如果用班主任代表欧盟,家长代表英国议会,小男生代表英国首相约翰逊,留级申请代表延期脱欧,这个虚拟故事就活脱脱的诠释了星期六(10月19日)在伦敦威斯敏斯特大厦(英国议会)里上演的真人秀。

英国议会上月通过的《防止无协议脱欧法》规定,最迟到10月19日23点前,如果议会没有投票通过任何与欧盟达成的协议,或同意无协议脱欧,首相约翰逊必须向布鲁塞尔(欧盟总部)请求将英国脱离欧盟的最后期限再次延长,从10月31日延长到2020年1月31日。

约翰逊一再信誓旦旦地称,他“宁愿死在沟里”,也不会去向欧盟乞求延期脱欧,把话说绝了。就在已经到了“沟边上”,离最后大限不到48小时了,约翰逊奇迹般的与欧盟“取得突破”,挥舞着与欧盟达成的新协议回到伦敦,要求议会进行“超级星期六”紧急辩论,赶在最后期限前就他拿回来的协议进行投票表决。

英国议会星期六是休会的。上一次破例在星期六进行紧急议会辩论,是近40年前福克兰群岛(马尔维纳斯群岛)冲突爆发,讨论英国是否出兵跟阿根廷干一仗。约翰逊把19日的议会投票冠以“超级星期六”,也不算夸大。毕竟,投票结果将对英国的未来有重大深远的影响。

一通辩论后,票是投了,但不是约翰逊拿回来的脱欧协议,而是反对派提出的一项延迟投票的修正案。修正案以322比306票获得通过,约翰逊虎口拔牙拿回来的协议被晾在一边,“超级星期六”变成了超级可笑的星期六。

毕竟,谈了近40个月的脱欧,最后一刻拿回来的协议,只给议员们4个小时辩论,连通读一遍都来不及。议员们要求延期投票,就草案按照立法程序先通过一读二读三读,好好研究研究新协议文本,也在情理之中。

但政府说,这是议会阻挠实现英国人民脱欧意愿的最新伎俩而已。约翰逊首相发誓,他不会向欧盟申请延期,他仍然坚信能够在10月31日前带领英国脱离欧盟。

然而,10月19日23点的最后期限是有法律效力的。如果约翰逊拒绝发申请信,就是违法。约翰逊真的甘当“脱欧烈士”以身试法吗?

就在19日晚最后一刻,欧盟委员会主席图斯克收到了一封英国政府申请延期脱欧的影印件,没有人在影印件上签名。

紧接着,图斯克收到了第二封信,这一封是约翰逊亲笔签名的。第二封信要求欧盟不要理会第一封信,约翰逊请求欧盟不要考虑同意延期脱欧。

怎么会出现这样的荒唐局面?这里需要再提一笔我在英国脱欧:“死在沟里”与“脱欧烈士”之间的首相约翰逊一文中提到的一个细节。

《防止无协议脱欧法》中特别明确,必须是约翰逊本人亲自写信向欧盟要求延期,而且请求信的具体行文都已经写在法案里,现成的公函文本。约翰逊拉不下脸来自己写信没关系,只需签上自己的名字就是了。

反对派在法案中设计的这么具体,就是要做到滴水不漏,把约翰逊逼到死角,防止他金蝉脱壳。但约翰逊居然把公函文本复印下来发给了欧盟,然后自己写信向欧盟提出相反的要求。

香港示威:旺角女人街“新移民”商户眼中的中港关系

香港旺角女人街、花园街是著名观光购物景点,露天市集售卖形形色色的纪念品、衣服和生活用品。但香港“反送中”抗议爆发,一街之隔的大街弥敦道,多次成为警察与示威者冲突的战场。原本旅客络绎不绝的女人街也在劫难逃,深受催泪弹和汽油弹的侵袭。

这些面对生存危机的小商户,在中国国庆“十一黄金周”面临的煎熬尤为明显。

50来岁的陈女士是女人街一家售卖衣服的摊主,她对BBC中文慨叹自己档口的生意额比去年下跌7至8成。

“那些拿行李箱的大陆旅客或是大陆团都没有了,以前暑假、十一国庆都是赚钱的黄金时间,但近几个月来,生意不断下跌。以往每个月赚到几万块,现在是几千块,再这样过2个月就撑不下去。”

“以前的香港很好的,只要你肯努力,就可以赚钱,就算是‘沙士’(传染病非典型肺炎),大家也在互相支持,但现在,香港变得很差,”她说。

根据香港旅游发展局的数字,8月份访港旅客比去年同期大跌近4成,小商户的生意额同样大跌。

香港抗议活动中警察与抗议者间的冲突画面自6月起成为了“新常态”。

每逢旺角、太子该区有冲突的异样,附近便会有人告知,“又来了,大家小心。”陈女士便会连忙把衣服收起来,赶紧离开。

这几个月以来,她经常提早收档,一来是顾客不多,二来是要避开冲突,找车赶回家。

她说,“反送中”抗议初期,冲突场面大多出现在晚上,日间的和平示威对她影响不大,但示威后来变得愈来愈频繁,警民冲突提前下午便开始,示威者堵路令巴士要改道或停运,地铁站屡屡成示威者目标遭大肆破坏而经常关站。

“试过有一天,我晚了些离开,到处也找不到车回家,我儿子告诉我,要走到尖沙咀找小巴,那次之后,我都紧盯着新闻,感觉不对就索性不开店,”陈女士说,“这儿好像戒严般的,大家四处不能去。”

她把责任归究示威者,认为示威者堵路影响交通,并诉诸“暴力”破坏商店,逼使警察施放催泪弹,“你犯法就要抓你,你打警察、警察开枪是天经地义。”

在“一国两制”下,香港享有与大陆不一样的自由度和法律系统。抗议者则担心香港的法治、自由受损,令香港变成普通的中国城市。

由反逃犯条例(也称“反送中”)引发的抗议活动已有四个月。尽管特首林郑月娥9月初已正式撤回此协议,但她拒绝回应其它四项公众诉求包括成立独立委员会调查香港警察滥权等指控。示威者认为是政府不回应以及警察暴力在先致使冲突升级。

“无论任何诉求,都不应该暴力”
陈女士说,自己学识不高,对政治冷感,不会投票,也不理解什么是《逃犯条例》和“五大诉求”,但强调“无论任何诉求,都不应该暴力,暴力是不对的”。

香港示威者群体中流行“揽炒”一词,意思是不介意包括以经济下行换取政治诉求的实现。 但陈女士直斥,“他们是疯了,做人怎么可以这样自私,示威可能影响不到他们,但影响到我。”

香港示威者近期会因为个别食肆和店铺发表“支持警察”的言论而发起杯葛行动。美心集团因为其创办人谴责示威者,而令旗下营运的食肆遭激进示威者大肆破坏,一些持有不同政见的人士,向示威者动武后会遭到“私刑”,被打到头破血流,示威者称其为“私了”,即“私下执法了结”的意思,这种甚具争议的做法引来不少批评。

十几年前,陈女士从中国大陆嫁到香港,目前有三个还在念书的小孩,丈夫打散工,一家五口住在公营房屋,她在10月5日香港政府宣布推行《禁蒙面法》当天接受BBC中文访问,分享了她对抗议和中港矛盾的看法。

但她再三叮嘱记者不能公开她的身份。“我不想示威者会针对我的店,他们常常说要有言论自由,但我们现在根本没有(言论自由),批评他们会被骂。”

陈女士说,明白中国大陆是“法治不太好”、“不太自由”的地方,但她认为这些跟“普通老百姓”没有关系,而香港仍然是有自由的地方,“你还是可以看脸书和YouTube,在大陆,你这样抗议早被打死了,香港人被宠坏了,其实香港人只要乖乖的,大陆一定不会对香港人差,就是因为你们不听话,大陆才打压你,中港一家亲,为什么一定要搞到关系这么差。”